Tomato Crop Advisory - DISEASES, PESTS, AND PROBLEMS

Tomato Crop Advisory - DISEASES, PESTS, AND PROBLEMS

 0 दिन से पहले 

नर्सरी:
1.नर्सरी मे बुवाई हेतु 1X 3 मी. की ऊठी हुई क्यारियां बनाकर फॉर्मल्डिहाइड द्वारा स्टरलाइजेशन कर लें अथवा कार्बोफ्यूरान 30 ग्राम प्रति वर्गमीटर के हिसाब से मिलावें।
2. बीजों को बीज कार्बेन्डाजिम/ट्राइकोडर्मा प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचारित कर 5 से.मी. की दूरी रखते हुये कतारों में बीजों की बुवाई करें। बीज बोने के बाद गोबर की खाद या मिट्‌टी ढक दें और हजारे से छिड़काव -बीज उगने के बाद डायथेन एम-45/मेटालाक्सिल से छिड़काव 8-10 दिन के अंतराल पर करना चाहिए।
3. 25 से 30 दिन का रोपा खेतों में रोपाई से पूर्व कार्बेन्डिजिम या ट्राईटोडर्मा के घोल में पौधों की जड़ों को 20-25 मिनट उपचारित करने के बाद ही पौधों की रोपाई करें। पौध को उचित खेत में 75 से.मी. की कतार की दूरी रखते हुये 60 से.मी के फासले पर पौधों की रोपाई करें।

मिट्टी: उचित जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि जिसमे पर्याप्त मात्रा मे जीवांश उपलब्ध हो।

तापमान: टमाटर की फसल पाला नहीं सहन कर सकती है। इसकी खेती हेतु आदर्श तापमान 18. से 27 डिग्री से.ग्रे. है। 21-24 डिग्री से.ग्रे तापक्रम पर टमाटर में लाल रंग सबसे अच्छा विकसित होता है। इन्हीं सब कारणों से सर्दियों में फल मीठे और गहरे लाल रंग के होते हैं। तापमान 38 डिग्री से.ग्रे से अधिक होने पर अपरिपक्व फल एवं फूल गिर जाते हैं।

                                                                                    

रोपाई 0  दिन से पहले

बुवाई का समय : वर्षा ऋतु के लिये जून-जुलाई तथा शीत ऋतु के लिये जनवरी-फरवरी। फसल पाले रहित क्षेत्रों में उगायी जानी चाहिए या इसकी पाल से समुचित रक्षा करनी चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में: किस्मों का चयन कृषकों को अपने क्षेत्र की परिस्थितियों के अनुसार करना चाहिए|

बीज की मात्रा: एक हेक्टयेर क्षेत्र में फसल उगाने के लिए नर्सरी तैयार करने हेतु लगभग 350 से 400 ग्राम बीज पर्याप्त होता है। संकर किस्मों के लिए बीज की मात्रा 150-200 ग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहती है।

बीज का उपचार: बुवाई पूर्व थाइरम/मेटालाक्सिल से बीजोपचार करें ताकि अंकुरण पूर्व फफून्द का आक्रमण रोका जा सके।

खरपतवार नियंत्रण: आवश्यकतानुसार फसलों की निराई-गुड़ाई करें। फूल और फल बनने की अवस्था मे निंदाई-गुड़ाई नही करनी चाहिए। रासायनिक दवा के रूप मे खेत तैयार करते समय या रोपाई के 3 दिन के अंदर पेन्डीमिथेलिन छिड़काव करें।

 

 

रोपाई ( 00 to 15 days ) 

डेम्पिग ऑफ: पीथियम फाइटाफ्थोरा एवं राइजोक्टोनिया नामक फफूंदों के मिले-जुले संक्रमण से यह रोग होग होता है। सर्वाधिक संक्रमण पीथियम नामक फफूंद से होता है कृषक इस रोग को स्थानीय स्तर पर कमर तोड़ रोग के नाम से पुकारता है।

10 to 15 days ( सिचाई पोषक तत्त्व की जरूरत ) 

सर्दियों में 10-15 दिन के अन्तराल से एवं गर्मियों में 6-7 दिन के अन्तराल से हल्का पानी देते रहें। अगर संभव हो सके तो कृषकों को सिंचाई ड्रिप इर्रीगेशन द्वारा करनी चाहिए|

समय समय पर पौधे को सही मात्रा मे पोषक तत्व की जरुरत पड़ती है | जो की पौधे को बढ़वार व फुटाव प्रदान कर सके| सही पोषक तत्व की उपलब्धता से पौधे ज़्यादा हरे होगे जिसके कारण फलिया ज्यादा बनेगी और उपज मे वृधि होगी|

    

 

हानिकारक कीट और रोक धाम 15 - 30 days 

पत्ते का सुरंगी कीड़ा: यह कीट पत्तों को खाते हैं और पत्ते में टेढी मेढी सुरंगे बना देते हैं। यह फल बनने और प्रकाश संश्लेषण क्रिया पर भी असर करता है।

सफेद मक्खी: इस के निम्फ व वयस्क पत्तियों की कोशिकाओं से रस चूसते हैं, जिस से पौधे की बढ़वार रुक जाती है. इस के अलावा यह वाइरस जनित रोग भी फैलाता है. पत्तियां कमजोर हो कर गिर जाती हैं.

थ्रिप्स, फल छेदक: यह टमाटर का मुख्य कीट है।सूडि़यां पत्तियों, मुलायम तनों व फूलों को खाती हैं. बाद में ये सूडि़यां कच्चेपके टमाटर के फलों में छेद कर के उन के अंदर का गूदा खा जाती हैं.

तंबाकू की सूंड़ी: इस कीट की सूंडि़यां हानिकारक होती हैं. शुरू में सूंडि़यां झुंड बना कर पत्तियों को खाती हैं. ये सूंडि़यां पौधों की शिराओं, डंठल व पौधे की कोमल टहनियों को भी खा जाती हैं|

       

 

30 - 60 days बीमारी और रोकधाम 

ऐंथ्राक्नोस:  (गर्म तापमान और ज्यादा नमी वाली स्थिति में यह बीमारी ज्यादा फैलती है।), झुलस रोग, मुरझाना और पत्तों का झड़ना, पत्तों पर धब्बे

फल सडऩ:  इस रोग का संक्रमण सामान्यत: कच्चे एवं हरे फलों पर दिखाई देता है। प्रभावित फलों पर हल्के या गहरे भूरे रंग के गोलाकार धब्बे चक्र के रूप में दिखाई देते हैं जो हिरण की आंख की तरह लगते है।

  अगेती अंगमारी: इस रोग में पत्तों पर गहरे भूरे रंग के गोलाकार चक्रनुमा धब्बे बनते हैं जो लक्ष्य पटल की तरह दिखाई देते हैं।

भभूतिया रोग: एरिसिफे साइकोरेसिरेयम नामक रोग में पत्तों की निचली सतह पर सफेद चूर्णी धब्बे दिखाई देते हैं जिसके अनुरूप पत्तों की ऊपरी सतह पीली पड़ जाती है ।

 जीवाणु जन्य उकठा रोग:  जब फसल पूर्णत: विकसित होकर पूरी क्षमता से उत्पदान देने की स्थिति में आता है तो अचानक स्वस्थ पौधे बिना किसी पीलेपन या धब्बे आदि के नीचे की तरफ झुक कर पूरा पौधा मुरझा जाता हैं एवं अन्त में नष्ट हो जाता हैं।

 पिछेती अंगमारी (झुलसा):  आरंभिक लक्षण के रूप में पत्तों पर गहरे भूरे रंग के अनियमित आकार के धब्बे बनते हैं। जो प्रगत अवस्था में आपस में मिलकर बड़े धब्बे गहरे काले रंग के बनाता है।

 

Tomato - Protection

  • Anthracnose

    Anthracnose

  • Aphid

    Aphid

  • Bacterial Blight

    Bacterial Blight

  • Bacterial Leaf Spot

    Bacterial Leaf Spot

  • Bacterial Wilt

    Bacterial Wilt

फलों की तुड़ाई 600 days 

जब फलों का रंग हल्का लाल होना शुरू हो उस अवस्था मे फलों की तुड़ाई करें तथा फलों की ग्रेडिंग कर कीट व व्याधि ग्रस्त फलों दागी फलों छोटे आकार के फलों को छाटकर अलग करें। ग्रेडिंग किये फलों को केरैटे में भरकर अपने निकटतम सब्जी मण्डी या जिस मण्डी मे अच्छा टमाटर का भाव हो वहां ले जाकर बेचें।

 



Posted 1 year ago

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