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मिट्टी: इसे हर तरह की मिट्टी, जिसकी पी एच दर 6-8 होती है, में उगाया जा सकता है। इस फसल की खेती के लिए गहरी, नर्म, अच्छे निकास वाली और उपजाऊ मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। कपास की बिजाई के लिए रेतली, खारी या जल जमाव वाली ज़मीने ठीक नहीं होती। मिट्टी की गहराई 20-25 सैं.मी. से कम नहीं होनी चाहिए।
ज़मीन की तैयारी: फसल की अच्छी पैदावार और विकास के लिए ज़मीन को अच्छी तरह तैयार करना जरूरी होता है। रबी की फसल को काटने के बाद तुरंत खेत को पानी लगाना चाहिए। इसके बाद खेत की हल से अच्छी तरह जोताई करें और फिर सुहागा फेर दें। ज़मीन को तीन वर्षों में एक बार गहराई तक जोतें, इससे सदाबहार नदीनों की रोकथाम में मदद मिलती है और इससे मिट्टी में पैदा होने वाले कीड़ों और बीमारियों को भी रोका जा सकता है।
बिजाई का समय: अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए बिजाई का उचित समय 15 अप्रैल से जून का पहला सप्ताह होता कपास की फसल के आस-पास अरहर, मूंग और भिंडी को ना बोयें क्योंकि यह कीड़ों का स्थान बनाने के लिए सहायक फसलें हैं।
अंतरफसली: चने, बरसीम, गेहूं और मेथी की कटाई के बाद कपास की फसल लगानी चाहिए।
फासला: पंक्ति से पंक्ति का फसला 30 सैं.मी. और पौधे से पौधे का फसला 67.5 सैं.मी. रखें। यदि पिछेती बिजाई करनी हो तो पौधे का फासला कम कर दें और बीज की मात्रा को बढ़ा दें।
बीज की गहराई: बिजाई 4-5 सैं.मी. गहराई में होनी चाहिए। शोध के मुताबिक पूर्व से पश्चिम में बिजाई उत्तर से दक्षिण में बिजाई से ज्यादा उपज देती है।
बिजाई का ढंग: देसी कपास की बिजाई के लिए बिजाई वाली मशीन का प्रयोग करें। कुछ बीजों के अंकुरन ना होने के कारण और नष्ट होने के कारण कईं जगहों पर फासला बढ़ जाता है। इस फासले को खत्म करना जरूरी है। बिजाई के दो सप्ताह बाद कमज़ोर, बीमार और प्रभावित पौधों को नष्ट कर दें और सेहतमंद पौधे रखें।
बीज की मात्रा: बीज की मात्रा बीजों की किस्म, उगाये जाने वाले इलाके, सिंचाई आदि पर बहुत ज्यादा निर्भर करती है। अमेरिकन हाइब्रिड कपास के लिए 1.5 किलो प्रति एकड़ जबकि अमेरिकन कपास के लिए बीज की मात्रा 3.5 किलो प्रति एकड़ होनी चाहिए। देसी कपास की हाइब्रिड किस्म के लिए बीज की मात्रा 1.25 किलो प्रति एकड़ और कपास की देसी किस्मों के लिए 3 किलो प्रति एकड़ होनी चाहिए।
बीज का उपचार: अमेरिकन कपास का बीज हल्के रेशे से ढका होता है। इसके रेशे को बिजाई से पहले हटा दें, ताकि बिजाई के समय कोई मुश्किल का सामना ना करना पड़े। इसे रासायनिक और कुदरती दोनों ढंग से हटाया जा सकता है। कुदरती ढंग से रेशा हटाने के लिए बीजों को पूरी रात पानी में भिगोकर रखें, फिर अगले दिन गोबर और लकड़ी के बुरे या राख से बीजों को मसलें। फिर बिजाई से पहले बीजों को छांव में सुखाएं। रासायनिक ढंग बीज के रेशे पर निर्भर करता है। शुद्ध सल्फियूरिक एसिड (उदयोगिक ग्रेड) अमेरिकन कपास के लिए 400 ग्राम प्रति 4 किलो बीज और देसी कपास के लिए 300 ग्राम प्रति 3 किलो बीज को 2-3 मिनट के लिए मिक्स करें इससे बीजों का सारा रेशा उतर जायेगा। फिर बीजों वाले बर्तन में 10 लीटर पानी डालें और अच्छी तरह से हिलाकर पानी निकाल दें। बीजों को तीन बार सादे पानी से धोयें और फिर चूने वाले पानी (सोडियम बाइकार्बोनेट 50 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) से एक मिनट के लिए धोयें। फिर एक बार दोबारा धोयें और छांव में सुखाएं।
खाद: खादें और सिंचाई के साधनों के सही उपयोग और अच्छी तरह से की जोताई से कीड़ों को पैदा होने से पहले ही रोका जा सकता है कीड़ों के कुदरती दुश्मनों की भी रक्षा की जा सकती है। पौधे के उचित विकास और ज्यादा टिंडे वाली टहनियों की प्रफुल्लता के लिए, मुख्य टहनी के बढ़ रहे हिस्से को लगभग 5 फुट की ऊंचाई से काट दें। आखिरी बार हल से जोतते समय बारानी क्षेत्रों में 2-4 टन रूड़ी और सिंचित क्षेत्रों में 4-8 टन रूड़ी का प्रति एकड़ के हिसाब से डालें। यह मिट्टी की नमी को बनाए रखने में सहायक सिद्ध होगी। कपास की विभिन्न-विभिन्न किस्मों के लिए खादों की मात्रा, 75 किलो यूरिया और 75 किलो सिंगल सुपर फासफेट प्रति एकड़ के हिसाब से डालें। हाइब्रिड किसमों के लिए, 150 किलो यूरिया और 150 किलो सिंगल सुपर फासफेट या म्यूरेट ऑफ पोटाश 40 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से डालें। देसी किस्मों के लिए यूरिया 45 किलोग्राम प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
आखिरी बार हल से जोतते समय फासफोरस की पूरी मात्रा खेत में डालें। पौधे के कमज़ोर हिस्से समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा और बाकी बची नाइट्रोजन फूल निकलने के समय डालें। कम उपजाऊ मिट्टी के लिए नाइट्रोजन की आधी मात्रा बिजाई के समय डालें। यूरिया में नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के लिए 50 किलो यूरिया 8 किलो सल्फर पाउडर से मिलाकर खड़ी फसल की पंक्तियों में डालें।
खरपतवार नियंत्रण: बिजाई के 6-8 सप्ताह बाद जब पौधों का कद 40-45 सैं.मी. हो तो पेराकुएट (ग्रामोक्सोन) 24 प्रतिशत डब्लयू एस सी 500 मि.ली. प्रति एकड़ या ग्लाइफोसेट 1 लीटर को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें नदीन नाशक 2, 4-डी से कपास की फसल काफी संवेदनशील होती है। बेशक इस नदीननाश्क की स्प्रे नज़दीक के खेत में की जाए, तो भी इसके कण उड़ कर कपास की फसल को बहुत ज्यादा नुकसान पहंचा सकते हैं। नदीन नाशक की स्प्रे सुबह या शाम के समय में ही करनी चाहिए। पौधों में ज्यादा फासला होने के कारण फसल पर नदीनों का गंभीर हमला होता है। अच्छी पैदावार के लिए फसल की बिजाई के बाद 50-60 दिनों तक फसल का नदीन रहित होना जरूरी है, नहीं तो फसल की पैदावार में 60-80 प्रतिशत कमी आ सकती है। नदीनों की असरदार रोकथाम के लिए हाथों से, मशीनी और रासायनिक ढंगों के सुमेल का उपयोग होना जरूरी है। बिजाई के 5-6 सप्ताह बाद या पहली सिंचाई करने से पहले हाथों से गोडाई करें। बाकी गोडाई प्रत्येक सिंचाई के बाद करनी चाहिए। कपास के खेतों के आस पास गाजर बूटी पैदा ना होने दें, क्योंकि इससे मिली बग के हमले का खतरा ज्यादा रहता है।
जड़ गलन: इससे पौधा अचानक और पूरा सूख जाता है। पत्तों का रंग पीला पड़ जाता है। प्रभावित पौधों को आसानी से उखाड़ा जा सकता है। मुख्य जड़ के अलावा कुछ अन्य जड़ें ताजी होती हैं जो कि पौधे की जकड़ बनाए रखती हैं और बाकी की जड़ें गल जाती हैं।बिजाई से पहले मिट्टी में नीम केक 60 किलो प्रति एकड़ में डालें। जड़ गलने के हमले की संभावना कम करने के लिए ट्राइकोडरमा विराइड 4 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। यदि इस बीमारी का हमला दिखे तो प्रभावित पौधों और साथ के सेहतमंद पौधों के निचली ओर कार्बेनडाज़िम 1 ग्राम प्रति लीटर डालें।
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